पत्रकार पूजा पांडे
जब हम शिक्षा की बात करते हैं एक सरकारी और एक निजी स्कूल की तस्वीरें हमारे सामने आ जाती हैं पर क्या समाज में बड़े और छोटे स्तर की स्कूलों को बांट दिया है जहां अच्छी शिक्षा देने वाले परिवार और एक छोटे परिवार के बच्चे को शिक्षा का अधिकार अलग अलग तरीके से है एक अच्छे परिवार का बच्चा सरकारी स्कूल में क्यों नहीं जा सकता और छोटे परिवार का बच्चा बड़े स्कूल में क्यों नहीं जा सकता इस सवाल का जवाब कहीं ना कहीं हमारे सामने होता फिर भी हमारे सामने सवाल खड़ा हो जाता है।
दिन रात मेहनत करने वाले माता पिता चाहे वह बड़े परिवार से हो छोटे परिवार से हो या माध्यम परिवार से सबकी सोच शिक्षा में अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देना होता है तो क्या समाज में अच्छी शिक्षा के लिए इतनी परिभाषाएं क्यों रख दी जाती है जहां एक बच्चे में जो 3 साल की उम्र से शिक्षा में प्रवेश कर जाता है पर उससे बड़े छोटे और माध्यम का मतलब समझ में आने लगता है जहां बड़ी स्कूल और छोटी स्कूल का मतलब समझ में आने लगता है आज बात उन स्कूलों की कि नहीं आज एक कहानी उस बच्ची की है
जिसकी उम्र लगभग 8 या 10 साल होगी जो बच्ची सुबह 4:00 बजे उठकर अपने माता पिता के साथ फूल की माला बनाकर 6:00 बजे अपने माता पिता का हाथ बटा कर 8:00 बजे स्कूल जाती है वह बच्ची स्कूल से आकर खेलने नहीं जाती जिसकी उम्र खेलने की है खिलौनों को समझने की है जिसे खिलौने को जानना चाहिए था वह बच्ची अगरबत्ती बनाती है और 7:00 बजे जब वह घर आती है तो नियमानुसार पढ़ाई करती हैं और सुबह से उसका यह दिनचर्या फिर शुरू हो जाता तो जहां हम शिक्षा की बात करते हैं इस बच्ची को किसने शिक्षा दी अपनी जिंदगी में अपने मां-बाप के लिए कितना करना है उनकी कैसे मदद करनी है और हम सभ्यता संस्कार परिस्थितियों से लड़ने के लिए अपने बच्चों को शिक्षा के लिए विद्यालय भेजते हैं पर शायद इस बच्ची ने सिखा दिया की स्कूली शिक्षा जरूरी नहीं कि वह संस्कार व सभ्यता इंसानियत और समाज की वह परिस्थितियां जिन से लड़ने के लिए हर व्यक्ति को तैयार रहना पड़ता है वह सब सीख हमें दे पाए जो हमें जिंदगी देती है
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