छत्तीसगढ़
----------------------------------------------------साप्ताहिक बंद को लेकर उठने लगे संगठन पर सवाल
खरसिया। लंबे अरसे बाद व्यापारिक संगठनों में हुए बड़े बदलाव ने जब बरमकेला में साप्ताहिक बंद का प्रस्ताव दिया तो वहां के व्यापारियों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। वहीं खरसिया में ऐसा तो नहीं किया जा रहा, परंतु साप्ताहिक बंद के विरोध की सुगबुगाहट दिनों दिन बढ़ती दिखाई दे रही है।
चर्चा है कि साप्ताहिक बंद का समर्थन ऐसे बड़े व्यापारी ही करते हैं जो रिटेल से कम वास्ता रखते हैं। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि जब ऑनलाइन व्यापार सप्ताह में सातों दिन जारी रहता है, तो अपनी ही लागत पर अपने ही मेहनत से अपना परिवार चलाने वाले लघु व्यापारी सप्ताहिक बंद कर अपनी आय को प्रभावित क्यों करें? वहीं यह भी तर्क दिया जाता है कि जब किराया पूरे 30 दिन का तो व्यापार सिर्फ 24 दिन ही करने की अनुमति क्यों?
▪️ त्योहारों में बंदकर दिया जा रहा कोरोना को आमंत्रण
यूं तो प्रशासन द्वारा त्योहारों के मद्देनजर सप्ताहिक बंद पर छूट प्रदान की गई थी, परंतु अभी त्योहार पूर्ण भी नहीं हुए हैं कि पुनः बंद थोपा जा रहा है। बाकायदा इस हेतु नगरपालिका के वाहन से हिदायत भी दी जा रही है। जबकि मंगलवार को रायगढ़ के व्यापारियों ने निगम आयुक्त से त्योहारों को लेकर बुधवार बंद में छूट मांगी तो उन्होंने सहर्ष खोलने की अनुमति दी थी। वहीं उल्लेखनीय होगा कि 15 नवंबर सोमवार को सभी समाजों के प्रमुख त्यौहार देवउठनी एकादशी का उत्सव है, जिसे छत्तीसगढ़ सरकार ने भी बड़ा त्यौहार मानकर अवकाश प्रदान किया है। वहीं ठीक एक दिन पूर्व रविवार को बंद करवाना सभी व्यापारियों के लिए नुकसानदायक साबित होगा। साथ ही सोमवार को बाजार में बेतहाशा भीड़ हो जायेगी, जो कोरोना को निमंत्रण देगी।
▪️व्यापारिक हितों से हो सरोकार
लॉकडाउन के बाद अनावश्यक रूप से बाजार बंद करने का खामियाजा उठाने वाले व्यापारियों सहित आमजनों में इस बात की भी चर्चा होने लगी है कि व्यापारिक संगठनों में ऐसे लोगों का मनोनयन कर दिया गया है, जो राजनीति में पूरा हस्तक्षेप रखते हैं। यही वजह है कि स्वयं को उच्च तथा दूसरे पक्ष को नीचा दिखाने की कला में निपुण यह पदाधिकारी बेवजह ही साप्ताहिक बंद थोप कर खुद के पदारूढ़ होने का अहम पोस रहे हैं। जबकि शहर में ना तो गुमास्ता एक्ट लागू है और ना ही कोरोना के ऐसे आंकड़े आ रहे हैं जिससे सप्ताहिक बंद करना आवश्यक हो। ऐसे में मांग उठने लगी है कि संगठनात्मक बदलाव कर ऐसे पदाधिकारियों का मनोनयन किया जाए, जो व्यापारिक हितों को लेकर सजग रहें।
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