सागर।कार्तिक माह में दीपावली के बाद देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है।कार्तिक स्नान करने वाली महिलाओं के द्वारा पूरे कार्तिक माह में भगवान कृष्ण और तुलसी का पूजन करने की परंपरा अनवरत जारी है।इसी माह में पढ़ने वाली देवउठनी एकादशी पर भगवान शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह किया जाता है इस विवाह की पूरी रस्मे हिंदू रीति रिवाज से होने वाले विवाहों की तरह ही निभाई जाती हैं।विवाह से पहले सभी रस्मों को विधिवत निभाया जाता है इसी क्रम में मकरोनिया के गायत्री नगर में भी पिछले कई वर्षों से तुलसी विवाह बड़े ही धूमधाम से कराया जाता है।विवाह से पहले गोदी  भराई लगुन हल्दी जैसी सभी रस्मों को निभाया जाता है।गुरुवार को गायत्री नगर में महिलाओं द्वारा तुलसी जी की गोदी भराई की रस्म निभाई गई जिसमें बड़ी संख्या में स्थानीय महिलाएं शामिल रही।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दैत्य जालंधर अपनी पत्नी वृंदा के सतीत्व और पतिब्रत धर्म के बल पर इतना बलशाली हो गया था की सभी देवता उसके आतंक से भयभीत थे और कोई भी उसे मार नहीं पा रहा था जब देवताओं ने भगवान विष्णु से जलंधर के अत्याचार से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की तो भगवान ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिब्रत को भंग किया और जालंधर मारा गया। भगवान विष्णु द्वारा किए गए छल से आहत होकर वृंदा ने भगवान को पत्थर हो जाने का श्राप दे दिया जिसके बाद भगवान शालिग्राम के रूप में परिवर्तित हो गए।भगवान को श्राप देने के बाद वृंदा ने भी खुद को भस्म कर लिया जिसके बाद भगवान विष्णु ने पश्चाताप करते हुए वृंदा के नाम से एक पौधा रोपा और उसे तुलसी का नाम दिया।साथ ही  शालिग्राम की पूजा के साथ तुलसी की पूजा होने का वरदान दिया।तभी से शालिग्राम और तुलसी विवाह सहित पूजन की परंपरा चली आ रही है।

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