मध्य प्रदेश के सागर जिले में बना अष्टकोण मंदिर जिसकी विशेषताएं अपने आप पर बहुत कुछ बताती हैं यह स्वयंभू है गणपति महाराज यहां सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं ऐतिहासिक और खूबसूरती से सजा यह मंदिर जिसकी कई कथा प्रचलित है सागर के गणेश घाट पर मौजूद यह मंदिर जिसमें भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है
 सागर. 2 सितंबर से गणेश उत्सव शुरू हो रहा है। उत्सव की तैयारी भक्तों द्वारा शुरू कर दी गई है। सिद्धी के दाता की घर-घर पूजा होगी। भारत का दूसरा अष्टविनायक गणेश मंदिर सागर में गणेशघाट पर है। 400 वर्ष पूराने इस मंदिर में सभी की मनोकामनाएं पूरी होती है। यहां पर स्थापित गणेश भगवान की प्रतिमा स्वंयभू है। जो 400 वर्षों पहले खुदाई में मिली थी। वर्षों पुराना यह मंदिर शिवाजी कालीन है। प्राचीन अष्टकोण मंदिर को भारत का दूसरा गणेश मंदिर भी कहा जाता है, जहां अष्ट विनायक विराजे हुए हैं। पहला सिद्धि विनायक मंदिर मुंबई हैं।

लाखा बंजारा झील के किनारे बने मंदिर का एक दरवाजा तालाब की ओर भी खुलता है जिससे पता चलता है कि सागर किले में रहने वाले मराठा शासकों के परिजन नौकाओं से मंदिर की पूजा अर्चना करने आते होंगे। चार सौ साल बाद भी मराठा गणेश महादेव मंदिर ने अपनी भव्यता बनाकर रखी है। मंदिर में लगे संस्कृत अभिलेख में मराठा शासकों द्वारा स्थापना का उल्लेख है। परिसर में श्री राधाकृष्ण जी का भी प्राचीन मंदिर है।

देशभर से दर्शनों के लिए आते हैं श्रद्धालु
देशभर के श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शनों के लिए आते हैं। पंडित गोविन्द आठले ने बताया कि मंदिर में महाष्ट्रीयन समाज के लोग ज्यादा आते हैं। इंदौर, कानपुर और पुणे तक श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। आठले ने बताया कि पीले कपडे में सुपाड़ी और जनेऊ के चढ़ाने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। खास बात यह है कि आठले के तीनों बेटे बाहर नौकरी कर रहे हैं और अच्छे पदों पर हैं। बड़ा बेटा अमेरिका में है, इसके बावजूद भी वे मंदिर की देखरेख कर रहे हैं।

1638 में बना था मंदिर
गणेश मंदिर को राजाओं ने वर्ष 1603 में बनवाना शुरू किया था। मंदिर 1638 में बनकर तैयार हुआ गया था। मंदिर का निर्माण मराठे, भोसले, शिन्दे और सागर के ग्यारह महाराष्ट्रीयन द्वारा किया गया। मंदिर की ऊंचाई ७० फुट है। 22 हजार 500 वर्ग फीट में इसे बनाया गया है। इसे अष्टकोण में बनवाया गया। आठले बताते हैं, इसे भारत का दूसरा गणेश मंदिर कहा जाता है, पहला मंदिर मुंबई में है।

किले की रानी रोज आती थीं

मंदिर मुगलकाल के समय प्राचीन मंदिर की सुरक्षा को खतरा था। जिसकी रक्षा करने के लिए यहां के तात्कालीन राजा दौआ की दूसरी पत्नी मंदिर रोज शाम जाती थी। जानकारी के मुताबिक रानी नाव से मंदिर जाती थीं और रोज दर्शन करती थीं। इस तरह उस समय मंदिर की सुरक्षा की गई।

6 पीढिय़ों से एक ही परिवार कर रहा सेवा
इस मंदिर की एक ही परिवार द्वारा छ: पीढिय़ों से सेवा होती आ रही है। राजा ठेकले की लड़की काशीबाई की शादी आठले परिवार में हुई थी, तभी से इस परिवार के द्वारा यहां सेवा कार्य किया जा रहा है। गोविंद राव आठले बताते हैं कि अब मेरे तीन बेटे हैं जिसमें बड़ा अमेरिका में नौकरी कर रहा है। तीनों नौकरी कर रहे हैं और मुझे अपने साथ रहने के लिए बोलते हैं लेकिन मैं नहीं जा सकता है। हम दोनों पति-पत्नी इस मंदिर में सेवा कर रहे हैं। और अभी मंदिर का जीर्णोध्दार कराया जा रहा है।

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