छत्तीसगढ़ से ब्युरो रिपोर्ट रोशन कुमार सोनी


मनरेगा से बने शेड ने बकरी पालन व्यवसाय को दी मजबूती
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रायगढ़, 3 मार्च 2022/ बकरी पालन के लिए मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से पक्का शेड बनने के बाद श्रीमती चंपाबाई अब व्यवस्थित ढंग से अपने व्यवसाय को आगे बढ़ा पा रही है। शेड बनने से पहले उसके पास केवल चार बकरी थी। मनरेगा के माध्यम से घर में बकरी शेड बनने के बाद उसके बकरी पालन के व्यवसाय ने जोर पकड़ा और कमाई बढऩे लगी। अब उसके पास 26 बकरे-बकरियां हो गए हैं। बकरी पालन से उसने छह महीने में ही 89 हजार रूपए कमाए हैं।
         रायगढ़ जिले के बटाऊपाली (ब) की श्रीमती चम्पाबाई बकरी पालन से अपने परिवार की आर्थिक हालात सुधार रही है। उसके इस काम में घर में मनरेगा से निर्मित बकरी पालन शेड ने बड़ी भूमिका निभाई है। चंपाबाई की लगन, मेहनत और मनरेगा के सहयोग से उसका व्यवसाय तेजी से फल-फूल रहा है और अच्छी आमदनी हो रही है। सारंगढ़ विकासखंड के बटाऊपाली (ब) ग्राम पंचायत की मां गंगा स्व-सहायता समूह की सदस्य चंपाबाई के परिवार के पास करीब पांच एकड़ जमीन है। इसमें से केवल तीन एकड़ में ही खेती-बाड़ी हो पाती है। खेती के बाद के समय में मजदूरी कर परिवार गुजर-बसर करता है। चंपाबाई ने घर की आमदनी बढ़ाने के लिए बकरी पालन का काम शुरू किया। लेकिन कच्चा और टूटा-फूटा कोठा के कारण इसमें बहुत कठिनाई हो रही थी। वह इसे व्यवस्थित ढंग से आगे नहीं बढ़ा पा रही थी। अपनी परेशानी को उसने समूह की बैठक में रखा। समूह की सलाह पर उसने मनरेगा के तहत अपनी निजी भूमि पर पक्का कोठा के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत को आवेदन दिया।
मनरेगा के अंतर्गत वर्ष 2020-21 में बतौर हितग्राही चम्पाबाई की निजी जमीन पर 61 हजार रूपए की लागत के बकरी शेड निर्माण (कोठा) के लिए प्रशासकीय स्वीकृति मिली। लगातार 15 दिनों के काम के बाद दिसम्बर-2020 में उसका कोठा बनकर तैयार हो गया। इस काम में उसके और गांव के एक अन्य परिवार को 34 मानव दिवसों का सीधा रोजगार भी प्राप्त हुआ, जिसके लिए करीब साढ़े छह हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। शेड बनने के बाद चंपाबाई को बकरी पालन के लिए पर्याप्त जगह मिली और उसका धंधा जोर पकडऩे लगा।
पक्का बकरी शेड निर्माण के पहले चम्पाबाई के पास केवल चार बकरी थी। शेड बनने के बाद उसने चार और बकरियां खरीदीं। इन बकरियों से जन्मे मेमनों के बाद उसके पास कुल 26 बकरे-बकरियाँ हो गए हैं। इनमें से 15 बकरे-बकरियों को बेचकर उसने छह महीनों में 89 हजार रूपए कमाए हैं। वह बकरी को पांच हजार रूपए और बकरा को सात हजार रूपए की दर से बेचती है। बकरी पालन से कम समय में हुए इस लाभ से चंपाबाई खुश है। इससे उसकी माली हालत तो सुधरी ही, घर के लिए उसने नई टीवी, पंखा और आलमारी भी खरीदी है।    
श्रीमती चंपाबाई बकरी पालन के अपने इस धंधे को और आगे बढ़ाना चाहती है। वह कहती है कि अगर उसे बकरी पालन के लिए मनरेगा से शेड नहीं मिलता, तो वह अपना काम आगे नहीं बढ़ा पाती। अब वह गांव के दूसरे लोगों को भी बकरी पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

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