हर साल की तरह इस बार भी दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन किया जाएगा। रावण दहन असत्य पर सत्य की जीत, अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का प्रतीक माना जाता है। आज ही के दिन भगवान राम ने लंका के राजा को युद्ध में हराकर माता सीता को रावण की कैद से मुक्त कराया। अब इसके पीछे एक तर्क ये भी है कि रावण तपस्वी, मूर्धन्य, समस्त अस्त्र-शस्त्रों का पारंगत बलशाली सोने की लंका का राजा था। तो आखिरकार क्यों उसका समूल विनाश हुआ ? क्या मात्र सीता का अपहरण करके? राम से शत्रुता मोल लेकर या फिर अहंकार के नशे में चूर होकर।

कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण प्रकांड विद्वान तथा राजधर्म का ज्ञाता था। राम ने लक्ष्मण को मृत्यु-शैय्या पर पड़े रावण के पास राजधर्म का रहस्य जानने भेजा था। तब रावण ने कहा ‘मैंने जिंदगी में बहुत बड़ी भूल की है। मेरी तीन योजनाएं थीं- स्वर्ग तक सीढ़ी बनाना, समुद्र का खारा पानी मीठा बनाना और सोने में सुगंध डालना। इन तीनों को कल पर टालता रहा और सीता अपहरण जैसे गलत काम को अंजाम दिया। अतएव सदा ध्यान रहे कि अच्छा काम टालने की बजाए तत्क्षण करना और बुरा काम कल पर टाल देना।’ रावण का चरित्र भी तारीफ के काबिल है। उसने सीताजी के साथ दुर्व्यवहार या किसी प्रकार का यौन-शोषण नहीं किया, जबकि आज गली-मोहल्लों में बलात्कार हो रहे हैं। ऐसे में पुतला रावण का नहीं बल्कि ऐसे अपराधियों का फूंकना चाहिए। आतंकवाद का पुतला जलाया जाना चाहिए जिसके कारण बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। भ्रष्टाचार का पुतला जलाना चाहिए जो हमारी जड़ों को खोखला कर रहा है।

राम अवतार पर संदेह

रावण भले ही विद्वान था वेदों का ज्ञाता था लेकिन उसे शक था कि राम अवतार हैं या नहीं। उसका मानना था कि यदि राम अवतार होंगे तो सीता को आजाद करा लेंगे अन्यथा मैं पटरानी बना लूंगा। अंतिम क्षण में उसने कहा कि- ‘राम मैं तुमसे हारकर भी जीत गया हूं। अंतकाल तुम मेरे सामने खड़े हो, इसलिए मैं मुक्ति का हकदार हूं। सहजता में मैं मुक्त हो गया, जिसके लिए साधक कितनी साधना करता है।’ राम भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं। तो क्या ऐसे मुक्त, विद्वान पुरुष का पुतला जलाना चाहिए?

सचमुच में रावण एक असामाजिक प्रवृत्ति है, अहंकार और अज्ञानता का प्रतीक है, राक्षसी विचारधारा है। अगर अहंकार, असामाजिकता और आतंक जैसी रावणी प्रवृत्ति का पुतला जलाना है तो क्यों नहीं पहले हम अपने अंदर इस प्रवृत्ति का शमन करें। अपने अंदर के असली रावण को जलाएं, जिससे हम तो सुखी होंगे ही, साथ ही समाज व राष्ट्र भी सुख व राहत की सांस ले सकेगा। रावण की विद्वता को, नसीहत को प्रथम अपनाएं और फिर पुतला जलाएं तो अच्छा होगा, न कि बाहर तो रावण को भस्म किया और हमारे अंदर का रावण अभी जिंदा है।

क्या कहते हैं दक्षिण भारत के लोग

दक्षिण भारतीय का मानना थोड़ा अलग है। उनका मानना है कि रावण यदि समुद्र का खारा पानी मीठा बना देता तो पीने के पानी की कमी न होती और स्वर्ण में सुगंध डाल देता तो सोने की कीमत में चार चांद लग जाते। दक्षिण भारतीयों का विरोध जायज है कि क्यों जलाते हैं रावण का पुतला? बात जलाने या न जलाने की नहीं है, बल्कि सच्चाई को समझने की है कि यदि रावण का पुतला जला रहे हैं तो सर्वप्रथम अज्ञानता, आतंकवाद, अहंकार का पुतला जलाना होगा और सत्य की, ज्ञान की, निर्भयता की और सुखमय जीवन की विजय करनी होगी।

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