छत्तीसगढ़ से संभागीय ब्यूरो की रिपोर्ट संजय सोनी 

बिलासपुर। बच्चे की कस्टडी को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अहम् फैसला दिया है। अदालत ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें पिता को बच्चे की कस्टडी दी गई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि कोई महिला अगर अपने पति की इच्छा के अनुसार नहीं ढलती तो उसे बच्चे की कस्टडी से वंचित नहीं रखा जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की खंडपीठ ने 14 वर्षीय लड़के की कस्टडी से संबंधित मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि समाज के कुछ लोगों को ‘शुतुरमुर्ग मानसिकता’ के साथ महिला को चरित्र प्रमाण पत्र देने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।

बता दें कि दोनों की 2007 में शादी हुई थी और उसी साल दिसंबर में उनके बेटे का जन्म हुआ था। 2013 में आपसी सहमति से उनका तलाक हो गया, जिसके बाद बच्चे की कस्टडी महासमुंद जिले की रहने वाली, उसकी मां को दे दी गई। 2014 में रायपुर के रहने वाले पति ने महासमुंद डिस्ट्रिक्ट फैमिली कोर्ट में आवेदन दायर कर बच्चे की कस्टडी की मांग की। याचिका में कहा गया कि महिला एक कंपनी में पुरुषों के साथ काम करती है। वह अन्य पुरुषों के साथ यात्रा करती है। उसका पहनावा और चरित्र भी अच्छा नहीं है। ऐसे मे बच्चे की दिमाग पर गलत असर पड़ेगा।

इसके बाद फैमिली कोर्ट ने 2016 में बच्चे की कस्टडी पिता को सौंप दी थी। इसके बाद महिला ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि पिता की ओर से दिए गए सबूतों से ऐसा लगता है कि गवाहों ने अपनी राय और सोच के मुताबिक बयान दिया है। कोई महिला आजीविका के लिए नौकरी करती है तो उसे यात्रा करनी पड़ेगी। इससे कोई महिला के चरित्र का अंदाजा कैसे लगा सकता है।

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