जलंधर में मां ज्वाला पद्मासन मुद्रा में हैं विराजमान, चैत्र और शारदीय नवरात्रि पर जलंधर धाम में मेले का होता हैं आयोजन
आस्था और विश्वास ऐसा कि लोग नवरात्रि में पैदल दर्शन करने आते हैं मंदिर
जरुआखेड़ा से लगभग 10किलोमीटर दूर सुरखी विधानसभा के जलंधर गांव में मां ज्वाला देवी का प्राचीनतम, अद्भुत और अद्वितीय मंदिर है। मां ज्वाला देवी सभी की आस्था का केंद्र है, मां भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। यह देश का इकलौता मंदिर है जहां मां काली ज्वाला देवी के नाम से क्रोध को शांत कर पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं। मूर्ति की विशेषता है कि यह एक ही शिला पर बनी है। मां की जीभ गले तक लगी है। मूर्ति में अंकित देवी-देवताओं की जानकारी अचंभित करने वाली है। मां ज्वाला देवी के पुजारी का कहना है कि मूर्ति किस शताब्दी की है इसका आंकलन पुरातत्वेत्ता भी नहीं कर पाए। इससे पुष्टि होती है कि मूर्ति प्राचीनतम है। अयोध्या, अमरकंटक और अन्य स्थानों पर सेवा करने के बाद ज्वाला माई मंदिर की सेवा में 25 साल पहले जालंधर पहुंचे पुजारी उद्धवदास महाराज ने बताया कि जब वह जंगल में स्थित इस मंदिर में आए तब भक्त आते थे और मूर्ति पर चोला चढ़ाकर चले जाते थे। यहां भक्तों की संतान की और अन्य मान्यता पूरी होती थी, इसीलिए ज्वाला माई का मंदिर उनकी आस्था का केंद्र था। तब मूर्ति के दर्शन नहीं हो पाते थे। क्योंकि पुजारी ने जब चोला उतारा तो इसका वजन 85 किलो था। मंदिर के पुजारी ने विधिवत सेवा शुरू की, तब उन्हें धीरे-धीरे मूर्ति के स्वरूप का साक्षात्कार हो पाया। मूर्ति की विलक्षणता पर पुजारी ने बताया कि देवीजी के मुकुट के पीछे मां काली का स्वरूप है। जहां भगवान शिव उनके पैर के नीचे हैं। उसके बाद उनका क्रोध शांत हुआ। मुकुट के नीचे का देवी का स्वरूप पद्मासन में शांत मुद्रा में सोम स्वरूप में है, उनकी जीभ निकली हुई है और गले तक लगी है। यह साक्षात महाकाली हैं जो क्रोध को शांत कर पद्मासन में विराजमान हैं। महाकाली ने दैत्यों का संहार करते हुए सोचा कि क्यों न असुरों को वरदान देकर सभी को संकट पैदा करने वाले ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संहार कर दिया जाए। महाकाली का यह मानस समझ देवों में हड़कंप मच गया। तब शिव उनके पैरों के नीचे गिर गए। जब मां को यह एहसास हुआ तब उनका क्रोध शांत हुआ। जलंधर में पद्मासन में विराजमान मां के नीचे अमृत कलश और ज्वाला की 7 जीभों का आकार अंकित है तो ऊपर उमा, रमा, ब्रह्माणी, काली और दुर्गा के स्वरूप अंकित है। हनुमान, भैरव, नंदी, वरुण भी मूर्ति में विराजमान है। नीचे दो सिंह और उनके दोनों तरफ दो पायक हैं। देवी मूर्ति के दायीं ओर शेषनाग, मां बीजासेन और देवी के 7 स्वरूप अंकित हैं। देवी के बायों और दायीं तरफ सूढ़ वाले गणेशजी हैं जो सर्पों का जनेऊ धारण किए हैं। उनके बायों ओर रिद्धि सिद्धि विराजमान हैं और इसमें उनके 12 स्वरूप के दर्शन विद्यमान हैं। यह मूर्ति भी अद्वितीय है। उनके पास शिवलिंग भी प्राचीन हैं। पद्मासन में विराजमान महाकाली के सोम स्वरूप के दर्शन दुनिया में सिर्फ जलंधर की सोम स्वरूप ज्वाला माई के ही हैं, बाकी सभी जगह मां काली विकराल, उग्र और क्रोध, गले में मुंडमाला डाले ही होती हैं। पुजारी ने बताया कि आल्हा हिंगलाज में अमर हुए थे तो इंदल जलंधर के पास पथरीगढ़ (वर्तमान राहतगढ़ के किले) में अमर हुए थे। पुरातत्वविदों ने ज्वाला माई मंदिर आकर मूर्ति की प्राचीनता की जानकारी करने की कोशिश की लेकिन अभी तक सफल नहीं हो सके। समूचा बुंदेलखंड धार्मिक पर्यटन की अपार संपदा को समेटे हैं। जिले का ज्वाला माई मंदिर इसका एक प्रमाण है।
ज्वाला माता की आस्था और विश्वास लोगो में इस कदर है की बड़ी दूर से लोग पैदल माता के दर्शन करने के लिए आते है मूर्ति मुगल काल से पहले की है यही पर छात्रसाल महाराज की अटारी के अवशेष रूप में है ग्रामीण जनो के अनुसार नवरात्रि में महाराज यहां आकर उपासना करते थे दंत कथाओं के अनुसार यहां पर आल्हा उदल भी नवरात्रि में आते थे और उपासना करते थे इसी क्षेत्र में पत्थरो को आपस में ठोकने से मजीरा जैसी आवाज की मधुर धुन सुनाई देती है वह मजीरा वाले पत्थर यही मिलते है वैसे तो यह सिद्ध क्षेत्र जंगल के बीचों बीच स्थित होने के कारण बड़ा ही मनोरम है वर्ष भर यहां लोग आते रहते है सत्यनारायण व्रत कथा सुहागले दाल बाटी नववर्ष बैशाखी पूजा आषाढी पूजा में लोग कथा मुंडन शादी के हाथे लगाने मांगलिक कार्यों हेतु अधिक संख्या में आते है कहा जाता है कि मां ज्वाला देवी सभी भक्तो की मुरादे पूरी करती है मंदिर में ध्वजा झंडा घंटा चढ़ाने की मान्यता है शारदीय चैत्र नवरात्रि में यहां पर क्षेत्रभर से चुनरी यात्रा ज्वारे भी आते हैं और मेले का आयोजन किया जाता है।
रिपोर्ट - जितेंद्र यादव
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