"भोपाल।
मध्यप्रदेश पुलिस में एक बार फिर “सेटिंग और सिस्टम” की हकीकत उजागर हो गई है। पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी सख्त निर्देश के बावजूद, वर्षों से एक ही कुर्सी पर जमे बाबुओं पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। आदेश को जारी हुए सप्ताहभर बीत चुका है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर ‘शून्य क्रियान्वयन’ की स्थिति बनी हुई है।क्या है मामला?पुलिस महानिरीक्षक जोन कार्यालय, उमनि रेंज, एसपी ऑफिस, एएसपी कार्यालय और एसडीओपी दफ्तरों में कुछ कर्मचारी जैसे रीडर, स्टेनो और उनके सहायक सालों से जमे हुए हैं। आदेश में कहा गया था कि लंबे समय से एक ही कार्यालय में टिके कर्मचारियों के निहित स्वार्थ पनप सकते हैं, जिससे न सिर्फ पारदर्शिता खतरे में पड़ती है, बल्कि आमजन को भी न्याय मिलने में अड़चन आती है।मुख्यालय ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि ऐसे कर्मचारियों की सूची तैयार कर उन्हें जल्द से जल्द अन्यत्र पदस्थ किया जाए। साथ ही इस प्रक्रिया की जानकारी भी मुख्यालय को दी जाए। लेकिन अफसोस — ज़मीनी हकीकत यह है कि आदेश के बाद भी संबंधित कार्यालयों में न तो समीक्षा हुई, न ही किसी का तबादला।क्यों नहीं हो रही कार्रवाई?सूत्रों की मानें तो कई कार्यालयों में इन कर्मचारियों की पकड़ इतनी मजबूत है कि आदेश भी उनके आगे बौना साबित हो रहा है। अधिकारियों की “मौन सहमति” और अंदरखाने की सेटिंग के चलते, कार्रवाई की फाइलें धूल खा रही हैं।अब उठ रहे सवालक्या DGP के आदेश की अहमियत अब केवल कागज़ों तक सीमित रह गई है?वर्षों से जमे इन 'दफ्तरी सूरमाओं' को बचाने में कौन-कौन है शामिल?क्या निष्पक्ष पुलिस व्यवस्था केवल भाषणों तक सीमित है?यदि जल्द कार्रवाई नहीं होती, तो यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि विभाग में अनुशासन और पारदर्शिता केवल दिखावे के लिए हैं, और DGP के हस्ताक्षरित आदेशों को भी आसानी से दरकिनार किया जा सकता है।

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