मानसून दस्तक दे चुका है, लेकिन सागर में जर्जर भवनों की कहानी जस की तस है। एक महीने पहले सागर कलेक्टर संदीप जी.आर. ने जिलेभर के अधिकारियों को तीन दिन में सभी जर्जर मकानों की सूची बनाकर रिपोर्ट देने के सख्त निर्देश दिए थे। आदेश साफ था — “जर्जर मकान चिन्हित करो, उस पर लाल क्रॉस मारो और मालिक का नाम लिखो... फिर भी कोई हादसा हुआ तो मकान मालिक जिम्मेदार होगा!”
लेकिन हकीकत? सागर शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में 90% से ज्यादा जर्जर भवन आज भी जस के तस खड़े हैं — मौत के साए की तरह!
न लाल क्रॉस, न कोई नोटिस, न ही कोई तोड़फोड़ — सब कुछ सिर्फ फाइलों में!
⚒️ हर गली में ‘संभावित हादसा’, लेकिन ज़िम्मेदार बेपरवाह
चाहे वह बाज़ार की पुरानी इमारतें हों या गल्ला मंडी के पास की टिनशेडनुमा दुकानें — सबके नीचे से लोग रोज़ गुजरते हैं और हर दिन खतरे की तलवार लटकी रहती है।
नगर निगम, तहसील और नगरीय निकायों को रिपोर्ट देनी थी, लेकिन नींद प्रशासन की आंखों से उतरती ही नहीं।
🧱 कलेक्टर का साफ अल्टीमेटम था:
जर्जर भवन चिन्हित करें
लाल पेंट से क्रॉस का निशान लगाएं
मालिक का नाम अंकित करें
3 दिन में कार्रवाई नहीं तो भवन तोड़ें और खर्च वसूलें
पर आज तक कोई प्रभावशाली धरातली कार्रवाई नहीं हो सकी।
🚨 कहीं किसी दिन ना हो बड़ा हादसा!
विशेषज्ञों की मानें तो अगर इसी तरह लापरवाही रही, तो एक बारिश में कई जिंदगियां इन जर्जर दीवारों के नीचे दब सकती हैं। सवाल ये है कि प्रशासन हादसे का इंतज़ार कर रहा है या अपनी ज़िम्मेदारी से आंखें मूंद रहा है?
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🔴 जनता की मांग:
👉 तुरंत प्रभाव से वार्डवार सर्वे कराया जाए
👉 चिन्हित भवनों पर कार्रवाई की दैनिक अपडेट सार्वजनिक हो
👉 अधिकारियों की जवाबदेही तय हो
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