🌊 समुद्र मंथन और शिव पर जल चढ़ाने की परंपरा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को पीकर जब भगवान शिव का कंठ नीला हो गया, तब सभी देवताओं ने उन्हें शीतलता देने और विष के प्रभाव को कम करने के लिए गंगा जल अर्पित किया। तभी से सावन मास में जलाभिषेक की परंपरा शुरू हुई।
🕉️ चार प्रमुख मान्यताएं — कौन था पहला कांवड़िया?
🪓 1. भगवान परशुराम
कुछ धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर पुरा महादेव में शिवलिंग पर जलाभिषेक किया था। आज भी लाखों श्रद्धालु इसी मार्ग से कांवड़ लेकर जल चढ़ाने आते हैं।
👣 2. श्रवण कुमार
दूसरी मान्यता के अनुसार, त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर तीर्थ यात्रा कराई और हरिद्वार में गंगा स्नान कराया। वापसी में गंगाजल लाकर उन्होंने जलाभिषेक किया। कई लोग उन्हें पहला कांवड़िया मानते हैं।
🏹 3. भगवान श्रीराम
कुछ कथाओं में कहा गया है कि भगवान राम ने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल लाकर बाबा बैद्यनाथ धाम (देवघर) में शिवलिंग पर जल चढ़ाया था।
🔥 4. रावण: शिव का अनन्य भक्त
एक और पौराणिक मान्यता कहती है कि रावण ने ही पहली बार कांवड़ में जल भरकर शिवजी का अभिषेक किया था। उन्होंने 'पुरा महादेव' मंदिर में शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाकर उन्हें विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाई।
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🚩 कांवड़ यात्रा: आस्था, अनुशासन और समर्पण का प्रतीक
आज कांवड़ यात्रा न केवल एक धार्मिक परंपरा है बल्कि आस्था, अनुशासन और समर्पण का जीवंत उदाहरण बन चुकी है। जहां पहले यह सिर्फ ग्रामीण परिवेश में सीमित थी, वहीं अब शिक्षित और शहरी वर्ग भी बड़ी संख्या में इस यात्रा में सम्मिलित हो रहा है।
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तो इस सावन, जब भी आप किसी कांवड़िया को बोल बम कहते हुए देखें, तो याद रखें — ये परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है, और इसका हर कदम, भगवान शिव की कृपा पाने की दिशा में एक आस्था भरा प्रयास है।
📿 हर हर महादेव!
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